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कौन है?-

वह एक छोटा सा घर था, जहां लक्ष्मण उसके माता-पिता के साथ रहता था। ठकराल जैसे ही घर में दाखिल हुआ सामने 40 -45 साल का आदमी जो खटिया पर बैठा था, एकदम खड़ा हो गया। "आइए साहब, जब से लक्ष्मण होटल से लौटा है तब से उसने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया है।" ठकराल आरव और निर्मोही के साथ भीतर आया। तीनो उस सज्जन के पास कुर्सी लगाकर बैठ गये।  "उसके बाद आप मिले नही लक्ष्मण से?" सवाल निर्मोही ने पूछा था।  "समझ में नहीं आता वह किस से इतना डरा हुआ था।" एक बूढी महिला ने कमरे में कदम रखते हुए कहा! "मैं उसे कुछ देर पहले खाना देने गई थी।" बात की डोर बांधती हुयी वह बोली, "तो उसने मुझे अंदर खींचकर तुरंत ही कमरा बंद कर लिया। वह ऐसे सांसे ले रहा था जैसे कही से भागकर न आया हो। फिर वह जोर से चिल्लाने लगा। "दरवाजा मत खोलना, वो फिर आ जाएगी। और मुझे मार डालेगी!" तब मैने चिल्लाकर पूछा था। "कौन आ जाएगा बेटा? कौन तुझे मार डालेगा? हम हैं ना, तु काहे को इतना डरता है?" "नहीं मां! वह बहुत ही डरावनी है बहुत ही बदसूरत। उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं हरा सकती। मेरी नजरों के सामने उसने मेमसाब को मार डाला।" "यहां कोई नही आएगा। तू बेफिक्र होकर खाना खा ले बेटा। अगर कोई आएगा भी तो तेरे बापू उसे जमीन में जिंदा गाड़ देंगे।" "तुम समझती क्यों नहीं मां? वह किसी से नहीं डरती। मैंने उसे देखा था। मैं होटल में खाना सर्व करने रूम नंबर 401 में गया था। डोरबेल बजाने पर जब दरवाजा नहीं खुला तो मैंने दरवाजे को धकेला। मेरी आँखें हैरत के मारे फटी की फटी रह गई। क्योंकि दरवाजा तो पहले से ही खुला हुआ था। अभी तक बिल्कुल सन्नाटा छाया हुआ था। मैंने चुपचाप खाना टेबल पर रख दिया और धीरे से बाहर निकलने लगा तो पीछे से मेम साहब की घबराई हुई आवाज सुनाई दी। "डियर कहां हो तुम? अंधेरे में मुझे बहुत डर लग रहा है।" आवाज बाथरूम तरफ से आई थी। मैंने देखा कि मोबाइल टॉर्च जलाकर मेम साहब बाथरूम में झांक रही थी। ठीक तभी उन्हें किसी ने बाथरूम में खींच लिया। बाथरूम का दरवाजा खुला पड़ा था। मैं उसी कमरे में छुप गया। और चुपचाप बाथरूम का नजारा देखने लगा। बाथरूम में जो कोई भी था उसके बाल बिखरे हुए थे। उसका चेहरा डरावना और बदसूरत था। उसने अपने गंदे हाथ ढक्कन की तरह मेमसाब के मुंह पर लगा रखे थे। और वह डायन मेम साहब की आँखों में आँखें डाल कर अपने नुकीले नाखूनों से मखमली बदन को कुरेदने लगी। मैं बहुत डर गया था। चुपचाप वहाँ से निकल जाना चाहता था। लेकिन मुझे लगा मेरी हिलचाल से डायन को मेरी मौजूदगी का एहसास हो जाएगा फिर मैम साहब के साथ वो मुझे भी मार डालेगी। तो चुपचाप में टेबल के पास छुप कर बैठा रहा। मेम साहब के मुंह पर उसके हाथों की पकड़ मजबूत होती जा रही थी। मेम साहब खुद को छुड़ाने के लिए छटपटाने लगी। देखते ही देखते डायन की आँखों में शोले नजर आए। उसने अपने नाखून से मेमसाहब का गला रेत दिया। उन्होंने हलाल होते बकरे की तरह डकार ली। मेमसाब बुरी तरह छटपटाइ। हाथ-पैर पटक रही थी। मगर मजाल थी वे उस शैतानी आत्मा की पकड़ से खुद को छुड़ा सकती।  कुछ देर में ही मैम साहब शांत हो गई उनके मोबाइल की टॉर्चलाइट अभी भी चल रही थी। मेमसाहब के गले से भल भल करके गर्म खून बहने लगा था। डायन ने उसके खून को अपने बदन पर मलना शुरू कर दिया। बहुत ही मजे से वह अपने चेहरे गर्दन और कंधों पर ताजा खून लगाने लगी। मैं काफी डर गया था। कलेजा मुंह को आ गया था। दिल जोर-जोर से पसलियों को तोड़ने में लगा था। फिर उसने जो हरकत की उसे देख कर मेरी रूह कांप उठी मैंने एक पल के लिए आँखें बंद कर ली। उसने अपना नुकीले नाखून वाला हाथ मेम साहब के मखमली बदन में उतार दिया। मेरे हाथ पैर कांपने लगे थे। मैंने मान लिया था कि अब मेरी खैर नहीं है मेरा भी वही हश्र होने वाला है रोमांस आपका हुआ है। उस  बदसूरत डायन ने जब अपना हाथ मैम साहब के पेट से बाहर निकाला तो डायन के हाथों में खून से भरा दिल नजर आया। जिसमें अभी भी हरकत बाकी थी। मुझे यह एहसास हो गया कि मेमसाहब के रूम में छूप कर मैंने जिंदगी की सबसे बड़ी गलती कर दी थी। डायन ने मेम साहब के बदन को उठाया और बिस्तर पर लाकर पटक दिया। कमरे में अंधेरा छाया था तो मुझे कुछ नजर नहीं आ रहा था। दोनों की परछाई को मैंने आँखें फाड़ फाड़ कर देखने की कोशिश की। कुछ देर बाद मैं उस दृश्य को देखने में कामयाब हो पाया। वो बदसूरत रूह  मैम साहब के चेहरे पर झुकी हुई थी। शायद वह अपनी जबान से मेम साहब के चेहरे को चाटने लगी थी। मेरा मन घिन से भर गया। मुझे मालूम था अब मुझसे जरा सी गलती हुई नहीं कि उस डायन को मेरे होने की भनक लग जाएगी। तभी तो मैं साँस भी धीरे-धीरे ले रहा था।  वह जब मेम साहब को छोड़कर उठी तब मेरा दिल जोर से धड़क उठा। मैं टेबल के नीचे छुप कर बैठ गया था। वह धीरे-धीरे मेरे पास आने लगी। मैंने अपनी साँसे रोक ली। वह ठीक मेरे पास से गुजरी। उसके अनावृत बदन से बहुत ही भयानक बदबू आ रही थी। उसके खुले लंबे लहराते बाल कमर से नीचे तक अठखेलियां कर रहे थे। वह मेरे पास से होकर दरवाजे के बाहर निकल गई। कुछ देर मैं अपनी जगह बैठा रहा। क्योंकि जो मैंने देखा था उसके बाद मेरा दिमाग सून हो गया था। जैसे मैं खुद एक लाश बन चुका था ---जिंदा लाश। लड़खड़ाते हुए मैं उस कमरे से बाहर निकल गया। मेम साहब को देखने की मुझमें हिम्मत नहीं थी। क्योंकि मैं समझ गया था कि उनकी दुर्दशा कैसी होगी। दरवाजे पर आकर मैंने दोनों तरफ देख लिया। अब कहीं भी उस बदसूरत स्त्री का साया नहीं था। मैं चुपचाप नीचे आया। होटल के मैनेजर को अपनी सेहत खराब होने का बहाना करके घर चला आया। जब से होटल से घर लौटा हूँ तब से मेरी आँखों से वह डरावना मंजर ओझल नहीं हो रहा।

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1 Comments

Gunjan Kamal

27-Sep-2023 08:54 AM

👏👌

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